चुनाव आयोग देश में 2024 के आम चुनाव के लिए मतदान कराने की तैयारियों में जुटा है। 543 लोकसभा सीटों पर चुनाव के लिए 19 अप्रैल से वोटिंग शुरू हो रही है। डेढ़ महीने की अवधि में चुनाव सात चरणों में होंगे। 4 जुन को चुनाव के नतीजे आएंगे। विविधता से भरे भारत में चुनाव कराना एक चुनौती भरा काम है। देश में कुल मतदाताओं की संख्या 96.88 लाख करोड़ है जिनमें पुरुष मतदाता 49.7 करोड़ तथा महिला 47.01 करोड़ है। इस चुनाव में 10.5 लाख मतदान केंद्र होंगे जहां 55 लाख से ज्यादा ईवीएम में लोग वोट डालेंगे। विश्व में किसी को एहसास भी नही होगा कि इतना बड़ा चुनावी व्यवस्था और तंत्र कहीं संभव है। पुरा विश्व भारत में चुनाव के शांतिपूर्ण संपन्न हो जाने पर आश्चर्य व्यक्त करता है। 

स्वतंत्रता के बाद हमारे देश में 17 आम चुनाव तथा लगभग 400 विधान सभा के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। देश में जनतांत्रिक प्रणाली को सफल बनाने के लिए निष्पक्ष और पैसे के प्रभाव से मुक्त चुनाव होना आवश्यक है। ऐसे चुनाव के लिए एक ऐसे चुनाव आयोग की आवश्यकता है जो नियमों में भी सुधार करे और अपनी कार्य पद्धति को भी आमजन के लिए सुलभ बनाए। 1980 के बाद चुनाव आयोग की भुमिका पर निरंतर देश में चर्चा चलती रही है। चुनाव आयोग को देश में निष्पक्ष, सत्तामुक्त चुनाव कराना होता हैं तो इसके लिए एक व्यापक दृष्टि की आवश्यकता है। आज हमारे देश के चुनाव धन तंत्र, धर्म तंत्र, बल तंत्र और सत्ता तंत्र इन चारों से प्रभावित है। इसलिए चुनाव दिखने में भले ही निष्पक्ष लगे परंतु वे कहीं न कहीं दूषित होते हैं। इन चारों में से कोई न कोई बुराई उन्हें प्रभावित करती है। टी एन शेषन पहले ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त थे, जिन्होंने चुनाव प्रणाली में सुधार की शुरूआत की थी। शेषन के बाद भी कुछ और आयुक्तों ने कुछ सुधार किये हैं। लेकिन यह अकेले चुनाव आयोग के द्वारा संभव नहीं है। जब तक की सत्ता और जनता भी उनके साथ न हो।

इसमें कोई संदेह नहीं कि चुनाव आयोग की प्रमुख भुमिका होती है। लेकिन राजनैतिक प्रतिष्ठान और मतदाताओं का अपनी व्यवस्था के प्रति सम्मान एवं अनुशासन नहीं हो तो संभव नही हो सकता। इस चुनाव की विशेषता यह है कि पहली बार एक करोड़ बयासी लाख मतदाता पहली बार अपना वोट डालेंगे। 20 वर्ष से 29 वर्ष के बीच के मतदाताओं की संख्या 19 करोड़ 74 लाख है। इतनी बड़ी युवा आबादी किसी देश का भविष्य होती है और मतदाता द्वारा भविष्य के सत्ता और विपक्ष की भुमिका तय करने में उनकी महत्तवपूर्ण होती है। 

यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की संवेदनशीलता है, जिसमें चुनाव आयोग ने व्यवस्था की है कि जो मतदाता मतदान केंद्रों तक पहुंचने की स्थिति में नहीं हैं, वह घर से मतदान का विकल्प चुनते हैं तो आयोग उन्हें उपलब्ध कराएगा। यह पहली बार होगा जब 85 वर्ष से अधिक उम्र और 40 प्रतिशत से ज्यादा दिव्यांग वाले अपने घर से मतदान कर सकेंगे। 88.35 लाख दिव्यांग मतदाताओं की संख्या है। चुनाव आयोग द्वारा दिए आंकड़ों के अनुसार 85 वर्ष से अधिक उम्र के 82 लाख पंजीकृत मतदाता हैं जबकि 2.38 लाख मतदाताओं की उम्र 100 वर्ष से अधिक है यानी इन मतदाताओं ने अपने देश का पहला आम चुनाव भी देखा होगा या उनमें से कुछ ने मतदान भी किया होगा। 

वैसे अभी भी चुनाव प्रक्रिया में बहुत सुधार की आवश्यकता है। कैसे चुनाव निष्पक्ष हो और जाति, धन, धर्म और दवाब से कैसे मुक्त हो, इससे संबन्धित उपाय और नियमों में सुधार करना होगा। दल बदल पर कोई नीति बनानी होगी। दलों द्वारा जारी घोषणा पत्र पर भी नियमों की जरूरत है । घोषणा पत्र केवल झूठ का पुलिंदा नही होना चाहिए। चुनाव आयोग को मतदान के लिए कुछ और सुविधाएं प्रदान करना चाहिए। आजकल ऑनलाइन का जमाना है। चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि व्यक्ति अपने घर से भी ऑन लाइन वोट कर सके और उसके लिए मतदान की पर्ची चुनाव आयोग के पास सुरक्षित हो जिससे कभी मिलान करने की आवश्यकता  पड़े तो किया जा सके। इससे मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा। जो भीड़ की वजह से मतदान करने नही जा पाते या जाना नही चाहते वह भी मतदान कर सकें।

हालांकि इन सुधारों पर अमल करना आसान नहीं है। देश के जनमत को इसके लिए खड़ा होना होगा। सरकार अकेले सुधार नहीं कर पाएगी जब तक जनता का दवाब नहीं होगा।

लेखक: -

डॉ प्रशान्त सिन्हा

ग़ाज़ियाबाद



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